संक्रमण

जीव के शारीरिक ऊतकों पर रोगी तत्वों का आक्रमण

रोगों में कुछ रोग तो ऐसे हैं जो पीड़ित व्यक्तियों के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संपर्क, या उनके रोगोत्पादक, विशिष्ट तत्वों से दूषित पदार्थों के सेवन एवं निकट संपर्क, से एक से दूसरे व्यक्तियों पर संक्रमित हो जाते हैं। इसी प्रक्रिया को संक्रमण (Infection) कहते हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में ऐसे रोगों को छुतहा रोग या छूआछूत के रोग कहते हैं। रोगग्रस्त या रोगवाहक पशु या मनुष्य संक्रमण के कारक होते हैं। संक्रामक रोग तथा इन रोग के संक्रमित होने की क्रिया समाज की दृष्टि से विशेष महत्व की है, क्योंकि विशिष्ट उपचार एवं अनागत बाधाप्रतिषेध की सुविधाओं के अभाव में इनसे महामारी (epidemic) फैल सकती है, जो कभी-कभी फैलकर सार्वदेशिक (pandemic) रूप भी धारण कर सकती है।कीटाणुनाशक क्या होता है? कीटाणुनाशक रसायनिक एजेंट होते हैं जो निष्क्रिय सतहों और वस्तुओं पर लगाया जाता हैं ताकि वहाँ मौजूद वायरस, बैक्टीरिया, फंगल जीवाणु, फंगस, फंफूदी आदि को नष्ट कर सकें। कीटाणुनाशक आमतौर पर जीवाणुओं की बढ़ोतरी को मार देते हैं या उनकी खुराक पर हमला करते dr.MN sing

संक्रमण
एक चूहे के मिडगुट एपिथेलियम के माध्यम से पलायन करने वाले एक मलेरिया स्पोरोज़ोइट को दिखाने वाले इलेक्ट्रॉन माइक्रोग्राफ
विशेषज्ञता क्षेत्रसंक्रामक रोग
कारणजीवाणु, परजीविजन्य, विषाणु, फफूंद, प्रायन

इतिहाससंपादित करें

19वीं शताब्दी में पाश्चात्य वैज्ञानिक लूई पास्चर ने अपने प्रयोगों द्वारा यह प्रमाणित किया कि जीवाणुओं (bacteria) द्वारा विशिष्ट व्याधियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। कॉक नामक वैज्ञानिक ने बैक्टीरिया अध्ययन की कतिपय प्रयोगशालीय पद्वतियों पर भी प्रकाश डाला। तत्पश्चात् इस प्रकाश से प्रेरणा लेकर अनेक वैज्ञानिक संहारक रोगों के जनक इन जीवाणुओं की खोज में लग गए और 19वीं शताब्दी के अंतिम चरण में वैज्ञानिकों ने रोगजनक जीवाणुओं की खोज यथा पूयोत्पादक, राजयक्ष्मा, रोहिणी (diphtheria), आंत्र ज्वर (Typhoid), विसूचिका (cholera), धनुस्तंभ (tetanus), ताऊन (plague) एवं प्रवाहिका (dysentery) आदि संक्रामक रोगों के विशिष्ट जीवाणुओं का पता लगाकर इनके गुणधर्म, संक्रमण एवं नैदानिक पद्धतियों पर भी प्रकाश डाला।

अब इस दिशा में अत्यधिक सफलता प्राप्त की गई है तथा इस प्रकार के अधिकांश रोगों के जीवाणुओं का निश्चित रूप से पता लगा लिया गया है। परिणामत: इनके संक्रमण की रोकथाम की तथा चिकित्सा में भी पर्याप्त सफलता मिलने लगी है। ये रोगजनक जीवाणु अत्यंत सूक्ष्म होते हैं और केवल सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखे जा सकते हैं। इसलिए इनको जीवाणु कहते हैं। सूक्ष्माकार के ही कारण इनकी लंबाई माइक्रोन में बतलाई जाती है। ये जीव वर्ग के एक कोशिकावाले अतिसूक्ष्म जीव होते हैं।

परिचयसंपादित करें

रोगजनक, संक्रमण में किसी न किसी जीवाणु का प्राय: हाथ होता है। ये जीवाणु वायु, जल, भूमि तथा प्राणियों के शरीर में कहीं कम, कहीं अधिक तथा समय विशेष एवं विशेष जलवायु क्षेत्र में न्यूनाधिक संख्या में पाए जाते हैं। प्राय: एक विशिष्ट प्रकार की विकृति तथा लक्षण उत्पन्न करनेवाले संक्रमण में एक विशिष्ट प्रकार का जीवाणु उत्तरदायी होता है, किंतु कभी-कभी एक से अधिक प्रकार के जीवाणुओं का संक्रमण एक साथ भी होता है, जिसे मिश्र संक्रमण कहते हैं और कभी एक ही प्रकार की विकृति अनेक भिन्न प्रकार के जीवाणुसंक्रमण से भी होती है।

संक्रामी व्यक्ति से अन्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में संक्रमण भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है। फिरंग (syphilis), सूजाक (gonorrhoea) तथा विसर्प (erysipelas) एवं मसूरिका आदि रोगों का संक्रमण मृत, संक्रांत या वाहक मनुष्य या पशु के प्रत्यक्ष संसर्ग से होता है। कुछ संक्रमण, जैसे जलसत्रास आदि, कुत्ते, स्यार तथा चूहे के काटने से होते हैं। श्वसनतंत्र के कुछ रोगों का संक्रमण खाँसने, छींकने या जोर से बोलते समय छोटे छोटे बिंदुओं के बाहर निकलने से समीप में बैठनेवालों को हो जाता है। इसे बिंदूक संक्रमण होना (Droplet infection) कहते हैं। संक्रांत, व्याधित या वाहक व्यक्ति के दूषित वस्त्र, पात्र, खाद्य, पेय, हाथ, यंत्र, शस्त्र, वायु एवं मुख संबंधी वस्तुओं के सेवन से अप्रत्यक्ष संक्रमण होता है। पाचन तंत्र के संक्रामक रोगों को फैलाने में घरेलू मक्खी एक प्रमुख यांत्रिक वाहक (machanical carrier) है। कुछ रोग जैसे मलेरिया, कालाजार, श्लीपद, प्लेग आदि का संक्रमण कीटाणुओं के वाहक मच्छर, पिस्सू, भुनगे, जूँ और किलनी के दंश से होता है।

संक्रमण के कुछ समय बाद रोगों के लक्षण उत्पन्न होते हैं। इस काल को उद्भवन काल (Incubation period) कहते हैं। विभिन्न रोग-जनक-जीवाणुओं के उद्भवन काल भिन्न भिन्न होते हैं।

सप्रति अधिकांश रोगजनक संक्रमणों के विशिष्ट निदान एवं चिकित्सा उपलब्ध हैं और आगे इस दिशा में तीव्रतापूर्वक कार्य हो रहा है।

जीवाणु-संक्रमण एवं विषाणु-संक्रमण में भेदसंपादित करें

जीवाणु संक्रमण और विषाणु-संक्रमण दोनो के लक्षण समान हो सकते हैं। किस कारण से संक्रमण हुआ है, यह बताना कठिन कार्य है।[1] किन्तु संक्रमण का कारण बैक्टीरिया है या वाइरस, यह पता करना बहुत महत्व का है क्योंकि विषाणुजनित संक्रमण को प्रतिजैविकों के द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता।

विषाणुजनित तथा जीवाणुजनित संक्रमण की तुलना
वैशिष्ट्यविषाणुजनित संक्रमणजीवाणुजनित संक्रमण
सामान्य लक्षणसामान्यतः विषाणु के कारण पैदा संक्रमण शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है। बहुत कम विषाणुजनित संक्रमणों के होने पर दर्द होता है (जैसे हर्पीज)। विषाणु द्वारा उत्पन्न संक्रमणों में खुजली या 'जलन' होती है।जीवाणुजनित संक्रमण में किसी स्थान पर लाली, गर्मी, सूजन और दर्द होते हैं। इसका विशेष लक्षण है कि शरीर के किसी एक भाग या स्थान पर दर्द होता है, विस्तृत भाग पर नहीं।
कारणरोगजनक विषाणुरोगजनक जीवाणु

इन्हें भी देखेंसंपादित करें

सन्दर्भसंपादित करें

बाहरी कड़ियाँसंपादित करें

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